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क्यों के इन हजरात ने यजीद की वली अहदी को तस्लीम नहीं किया था इस के एलावा इन हजरत से यजीद को ये भी खतरा था के कहीं इन में से कोई खेलाफत का दाअवा न करदे और ऐसा न हो के सारा हेजाज मेरे खेलाफ उठ खड़ा हो और हजरते इमामे हुसैन के दाअवा खेलाफ्त की सुरत में इराक में बगावत कासख्त अन्दिशा था इन वजहों के बेना पर याजिद के पेशे नजर सब से बड़ा मसअला अपनी हुकुमत को बचाने का था इस लिए उस ने इन हजरात से बैयत लेना जरूरी समझा फिर उस ने वलीद बिन उक़बा गवर्नरे मदीना को अमीरे मोवाविया की वफात की खबर दी और साथ ही इन हजरात से बैयत लेने के लिए सख्त ताकीदी हुक्म भेजा |
अगर वह बैयत कर लें तो बेहतर और अगर वह इंकार करें तो तीनो का सर कलम कर दो अगर तुम ने ऐसा न किया तो जब उनको मआविया के मौत की खबर मिलेगी ये तीनो एक एक मकाम पर जाकर खेलाफ्त का दाअवा कर के खड़े हो जएंगे फिर इन पर काबू पाना सख्त मुश्किल हो जायेगा लेकिन मैं इब्ने उम्र को मैं जनता हूँ उन से उम्मीद कम है वो जेदालो केताल करना नहीं चाहते सेवाए उसके के ये अम्र खेलाफ्त खुद बखुद उन को दे दिया जाये |
इधर अब्दुल्लाह बिन जुबैर तरह तरह के बहाने से वलीद के कासिडॉन को टालते रहे और वलीद के पास न आये और दुसरे दिन मदीना से मक्का मोकर्रमाँ को निकल गए वलीद के लोग सारा दिन उनकी तलाश में लगे रहे मगर वह न मिल सके इधर शाम के वक्त फिर वलीद ने इमाम हुसैन के पास आदमी भेजा आप ने फरमाया इस वक्त तो मैं नहीं आ सकता और सुबह होने दो फिर देखेंगे क्या होता है वलीद ने ये बात मान ली
यही वह शहर था जिस में आप ने उम्र अजीज का अब तक बेशतर हिस्सा गुजारा था बचपन से अब तक उसी शहर की पुर नूर फजाओं और मोअत्तर हवाओं में रोजों शब् का सिलसिला रहा था ये शहर आप के नाना जान का शहर था आप इसी गुलशने रसूल के महकते हुए फुल थे मगर अब इस शहर में आपका रहना मुश्किल हो गया था इसी शहर में आप की वाल्दा माजदा का मदफन था आपके भाई इसी शहर में आराम फरमा थे उस वक्त इमामे हुसैन की क्या कैफियत होगी वह रोजाये रसूल पर अपने जज्बात व एह्स्सात का इझहार कर रहे थे नाना जान के रु बरु अपना हाल ब्यान कर रहे थे फिर इमामे हुसैन अपने घर वालों को साथ ले कर मदीना से मक्का मुकर्रमा हिजरत कर गए
निर्देशक :-
हेलो दोस्तों मैं हु नूर आलम कादरी और मैंने इस आर्टिकल में बताया है के कर्बला में जंग किस वजह से हुई और इमामे हुसैनने याजिद की बैयत कयूं नहीं की अगर आपको ये आर्टिकलपसंद आये तो जरुर शेयर करें'
करबला में जंग किस वजह से हुई | imam hussain karbala history in hindi
करबला में जंग किस वजह से हुई | imam hussain karbala history in hindi
जब कोई चीज यकीनी होने वाली होती है तो उसके होने के वजह भी पैदा होते हैं इमामे हुसैन की शहादतकी वजह इस तरह पैदा हुए के जब 60 हिजरी में हजरते अमीरे मोआविया रदी अल्लाहो अंहो का इंतका हुआ और यजीद जिस के लिए वह अपनी जिन्दगी ही में बैयत ले चुके थे ) उनका जानशिन हुआ तख्ते हुकुमत पर बैठने के बाद उस के लिए सब से अहम मसअला हजरते इमामे हुसैन हजरते अब्दुल्लाह बिन जुबैर और अब्दुल्लाह बिन उम्र रदी अल्ल्हो अन्हुम की बैय्त का था |क्यों के इन हजरात ने यजीद की वली अहदी को तस्लीम नहीं किया था इस के एलावा इन हजरत से यजीद को ये भी खतरा था के कहीं इन में से कोई खेलाफत का दाअवा न करदे और ऐसा न हो के सारा हेजाज मेरे खेलाफ उठ खड़ा हो और हजरते इमामे हुसैन के दाअवा खेलाफ्त की सुरत में इराक में बगावत कासख्त अन्दिशा था इन वजहों के बेना पर याजिद के पेशे नजर सब से बड़ा मसअला अपनी हुकुमत को बचाने का था इस लिए उस ने इन हजरात से बैयत लेना जरूरी समझा फिर उस ने वलीद बिन उक़बा गवर्नरे मदीना को अमीरे मोवाविया की वफात की खबर दी और साथ ही इन हजरात से बैयत लेने के लिए सख्त ताकीदी हुक्म भेजा |
अमीरे मआविया की मौत की खबर
अभी तक मदीना के लोगों को अमीरे माआविया की मौत हो जाने की खबर न थी ! वलीद यजीद के इस हुक्म से बहुत घबराया कयूं के उस के लिए उस की तामिल भुत मुश्किल थी और वह उसके अंजाम को भी अच्छी तरह समझता था उस ने अपने नायेब मरवान बिन हुक्म को बुलाया और उस से इस मामले में मशवरा तलब किया मरवान संग दिल और सख्त मिजाज था उस ने कहा मेरी राये ये है के इन तीनो को इसी वक्त बोलाएँ और बैयत का हुक्म दें |अगर वह बैयत कर लें तो बेहतर और अगर वह इंकार करें तो तीनो का सर कलम कर दो अगर तुम ने ऐसा न किया तो जब उनको मआविया के मौत की खबर मिलेगी ये तीनो एक एक मकाम पर जाकर खेलाफ्त का दाअवा कर के खड़े हो जएंगे फिर इन पर काबू पाना सख्त मुश्किल हो जायेगा लेकिन मैं इब्ने उम्र को मैं जनता हूँ उन से उम्मीद कम है वो जेदालो केताल करना नहीं चाहते सेवाए उसके के ये अम्र खेलाफ्त खुद बखुद उन को दे दिया जाये |
वलीद ने इमामे हुसैन को बुलाया
इस मशवरा के बाद वलीद ने इन तीनों हजरात को बुलाने भेजा |उस वक्त इमामे हुसैन और अब्दुल्लाह बिन जुबैर दोनों मस्जिदे नबवी में थे और वो वक्त भी ऐसा था के उस में वलीद किसी से मिलता मिलाता न था |कासिद ने उन दोनों को आमिर का पैगाम दिया , उन्होंने कासिद से कहा तुम चलो हम अभी आते हैं इब्ने जुबैर ने इमाम हुसैन से कहा आप का खेयाल है आमिर ने ऐसे वक्त में जब के वह किसी से मिलते मिलाते नहीं है हमे कयूं बुलाया है इमाम हुसैन फरमाते हैं मेरा ये गुमान है के अमीरे मआविया फौत हो गए हैं और हमें इस लिए बुलाया है के उनकी वफात की खबर आम होने से पहले वह हम से यजीद की बैयत ले लें इब्ने जुबैर ने कहा मेरा गुमान भी यही है |इमामे हुसैन जब वलीद के पास गए
अब आपका क्या एरादा है ? फिर आप ने फरमाया मैं अपने चंद जवानो के साथ लेकर जाता हूँ कयूं की इंकार की सुरत में हो सकता है के मोआमला नाजुक सुरत एख्तेयार कर जाये फिर अपनी हेफाजत का सामन करके वलीद के पास पहुंचे और माकन के बाहर अपने जवानो को मोतैयाँ क्र दिए और उन से कहा के अगर मैं तुम्हें बुलाऊँ या तुम सुनो की मेरी आवाज बुलंद हो रही है तो फ़ौरन अन्दरआजाना और जब तक मैं बाहर न आजाऊं यहाँ से हर गिज न जाना आप अंदर गए और सलाम के अल्फाज कह कर बैठ गए वलीद ने आपको अमीरे म आविया की मौत की खबर सुनाई और यजीद की बैयत के लिए कहाइमामे हुसैन का बात चित वलीद से
आप ने ताजियत के बाद फरमाया मेरे जैसा आदमी इस तरह छुप कर बैय्त नहीं कर सकता और न मेरे लिए इस तरह ख़ुफ़िया बैयत करना मुनासिब है अगर आप बाहर निकल कर आम लोगों को और उनके साथ हमें भी बैयत की दावत दें तो ये एक बात होगी वलीद अमन और सोलह पसंद आदमी था उस ने कहा अच्छा आप तशरीफ़ लें जाएँ आप उठ कर चलें तो मरवान ने बहुत ब्रहम हो कर वलीद से कहा अगर तुम ने इस वक्त इन को जाने दिया और बैयत न ली तो फिर इन पर काबू न कर सकोगे ता वक्त तै के बहुत से लोग कतल न हो जाएँ उन को कैद कर दो अगर ये बैयत कर लें तो अच्छा है वरनाइन को कत्ल करदो इमाम हुसैन ये सुन कर खड़े हो गए और फरमाया ओं इब्ने जोरका क्या तू मुझे कत्ल करेगा या ये करेंगे ? खुदा की कसम तू झूठा है और कमीना है ये कह कर आप तशरीफ़ ले आयेमरवान ने वलिद से कहा इमामे हुसैन को क़त्ल कर दो
मरवान ने वलिद से कहा तुम ने मेरी बात न मानी – खुदा की कसम ! अब तुम उन पर काबू न पा सकोगे ये बेहतरीन मौका था के तुम उनको कत्ल कर देते वलीद ने कहा तुम पर अफ़सोस ! तुम मुझे ऐसा मशवरा दे रहे हो जिस में मेरे दिन की तबाही है क्या मै सिर्फ इस वजह से नवासये रसूल को क़त्ल कर देता के वह याजिद की बैयत नहीं करते अगर मुझे दुन्य भर का माल मिल जाए तो नही मैं उनके खून से अपने हाथ को आलूदा न करूँ खुदा की क़सम ! कयामत के दिन जिस से खूने हुसैन बाज परस होगि वह जरुर अल्लाह के सामने खाफिफुल मिजान होगा , मरवान ने कहा तुम ठीक कहते हो ,ये उसने सिर्फ झाहिर दिखावे के लिए कह दिया था वरना दिल में वह वलीद की बात को नना पसंद करता था { – हवाला ( इब्ने आशिर तिब्री )इमामे हुसैन याजिद की बैयत क्यों नहीं किये
वलीद के पास से आने के बाद इमामे हुसैन सख्त कशमकश में मुब्तला थे यजीद की बैयत आपको दिल से सख्त ना पसंद थी क्यूंकि वह ना अहल था और उसका इन्तखाब भी खोल्फाये राशेदीन के और इस्लामी तारिकाए इन्तखाब के बिलकुल खिलाफ और गैर शरई तौर पर ह्युआ था बलके आपके नजदीक ये कैसरो किसर के तर्ज की पहली शख्सि हुकुमत थी इस लिए आप एह्तेजाजन उस के खेलाफ़ थे और दूसरी तरफ हालात इजाजत नहीं देते थे के आप अलाल एलन उस के खेलाफ आवाज बुलंद करेंइधर अब्दुल्लाह बिन जुबैर तरह तरह के बहाने से वलीद के कासिडॉन को टालते रहे और वलीद के पास न आये और दुसरे दिन मदीना से मक्का मोकर्रमाँ को निकल गए वलीद के लोग सारा दिन उनकी तलाश में लगे रहे मगर वह न मिल सके इधर शाम के वक्त फिर वलीद ने इमाम हुसैन के पास आदमी भेजा आप ने फरमाया इस वक्त तो मैं नहीं आ सकता और सुबह होने दो फिर देखेंगे क्या होता है वलीद ने ये बात मान ली
इमामे हुसैन का मदीना से हिजरत
और आप ने उसी रात अपने अहलो अयाल और अजीजो अकारिब को साथ लेकर मदीना मनौव्रासे मक्का मोकर्रमा की तरफ हिजरत का एरादा कर लिया घर वालो को फरमाया के तुम तयारी करो और आप खुद मस्जिदे नबवी शरीफ में रोज्ये रसूल सल्लाहो अलैहे वसल्लम पर हाजिर हुए नवाफिल अदा कर के जो ही चेहरे रसूल के सामने पहुँच कर दस्त बस्ता स्लैम के अल्फाज अदा किये बे साख्ता आँखों से अश्के रवां हो गए जवारे रसूल से दुरी और शहरे रसूल से जुदाई के गम अंगेज ख्याल ने आप पर रक्त तारी कर दी |यही वह शहर था जिस में आप ने उम्र अजीज का अब तक बेशतर हिस्सा गुजारा था बचपन से अब तक उसी शहर की पुर नूर फजाओं और मोअत्तर हवाओं में रोजों शब् का सिलसिला रहा था ये शहर आप के नाना जान का शहर था आप इसी गुलशने रसूल के महकते हुए फुल थे मगर अब इस शहर में आपका रहना मुश्किल हो गया था इसी शहर में आप की वाल्दा माजदा का मदफन था आपके भाई इसी शहर में आराम फरमा थे उस वक्त इमामे हुसैन की क्या कैफियत होगी वह रोजाये रसूल पर अपने जज्बात व एह्स्सात का इझहार कर रहे थे नाना जान के रु बरु अपना हाल ब्यान कर रहे थे फिर इमामे हुसैन अपने घर वालों को साथ ले कर मदीना से मक्का मुकर्रमा हिजरत कर गए
निर्देशक :-
हेलो दोस्तों मैं हु नूर आलम कादरी और मैंने इस आर्टिकल में बताया है के कर्बला में जंग किस वजह से हुई और इमामे हुसैनने याजिद की बैयत कयूं नहीं की अगर आपको ये आर्टिकलपसंद आये तो जरुर शेयर करें'
Mashallah bahut achchi information dete ho but havala likh do to or char chand lagjaye
ReplyDeleteएक शराबी की जबरदस्त स्टोरी